ब्लैक बंगाल बकरी सामन्यतः बांग्ला देश में पायी जाती है | लेकिन इंडिया के कुछ उत्तर पूर्वी राज्यों जैसे पश्चिम बंगाल, बिहार, उड़ीसा में भी इनका पालन किया जाता है | इनका पालन मीट के उत्पादन हेतु किया जाता है | क्योकि दूध उत्पादन करने के मामले में यह नस्ल थोड़ी कमज़ोर होती हैं | ध्यान रहे ब्लैक बंगाल नाम हो जाने से ये बकरियां केवल काले रंग की नहीं होती, बल्कि इनका रंग भूरा, सफ़ेद इत्यादि भी हो सकता है | इस नस्ल की बकरियों को परिपक्व होने में अन्य बकरियों की तुलना में कम समय लगता है | और परिपकवता में बकरे का भार 25 से 30 किलो, और बकरी का भार 20 से 25 किलो तक होता है |
यह बोअर बकरी नस्ल साउथ अफ्रीका में पाई जाने वाली बकरियों की एक नस्ल है | लेकिन चूंकि इनका पालन भी मांस उत्पादन हेतु किया जाता है | इसलिए इंडिया में भी इस नस्ल की बकरियों का पालन किया जाता है | कहते हैं की Boer शब्द को डच भाषा से लिया गया है | जिसका मतलब किसान होता है | जहाँ 3 महीने के समय में इस नस्ल की बकरियों का भार 12 से 18 किलो तक होता है | वहीँ छह महीने में इनका भार 18 से 30 किलो तक हो जाता है | और पूर्ण रूप से परिपक्व होने पर इस नस्ल के बकरे का भार 75 से 90 किलो, वही बकरी का भार 45 से 55 किलो के बीच रहता है |
बकरियों की इस नस्ल को आप इंडिया उत्पादित नस्ल कह सकते हैं | कहते हैं की इस नस्ल का नाम Jamuna Pari जमुना नदी के नाम से रखा गया है | और इस नस्ल की बकरियों का पालन मांस की आपूर्ति के अलावा दूध की आपूर्ति हेतु भी किया जाता है | अर्थात इस नस्ल की बकरियों की दूध देने की क्षमता भी अच्छी होती है | इस प्रजाति की बकरियां आपको इंडिया में अधिकतर मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु, गुजरात, आंध्रा प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र इत्यादि राज्यों में देखने को मिल जाएँगी | परिपकवता में इस नस्ल के बकरे का भार 50 से 60 किलो, वही बकरी का भार 40 से 50 किलो होता है |
इस नस्ल का नाम सिरोही राजस्थान राज्य के एक जिले सिरोही के नाम से रखा गया है | इस नस्ल की बकरियों का पालन पहले राजस्थान में ही अधिक मात्रा में किया जाता था | लेकिन अब सम्पूर्ण इंडिया में इस नस्ल की बकरियों का पालन किया जाता है | इस नस्ल की बकरियों का पालन भी मांस की आपूर्ति हेतु ही किया जाता है | हालांकि ये दूध भी देती हैं लेकिन इनकी दूध देने की क्षमता प्रत्येक दिन केवल आधा लीटर तक होती है |
इस नस्ल की बकरियों का पालन इंडिया और पाकिस्तान में किया जाता है | और इनका पालन दूध और मांस दोनों की आपूर्ति हेतु किया जाता है | क्योकि इस नस्ल की बकरिया एक दिन में 1 या दो लीटर दूध देने की क्षमता भी रखती हैं | इस प्रकार की नस्ल की बकरियां अपने आपको किसी भी वातावरण में ढालने की क्षमता रखती हैं |
बर्बरी नस्ल एक डेयरी प्रकार बकरी है जो अफ्रीका के सोमाली भूमि में बरबेरा शहर में पैदा हुई है। यह नस्ल की बकरीया भारत में लाई गयी है जो अब यू0पी0 के आगरा, मथुरा, इटावा, अलीगढ और राजस्थान के जिले के आस पास भारी संख्या मेें पाई जाती है।
बर्बरी बकरियों का शरीर छोटी और ठोस होती है यह बकरीयो के शरीर के बाल छाटे छोटे होते है इसके शरीर सफेद के साथ-साथ छोटे हल्के भूरें रंग के पेच होते है इसके कान छोटे और हमेशा खडे रहते है।
यह बौना नस्ल की बकरी है जिसे हम लोग गाय की तरह अपने घर में भी पाल सकते है और इसलिए आमतौर पर शहरो में पाई जाती है। इन बकरीयों को लोग मांस और दूध के लिए इस्तेमाल करते है। यह बकरी का मांस बहुत ही स्वादिष्ट होता है।
Totapari goats are extremely curious and intelligent. They are also very coordinated and widely known for their ability to climb and hold their balance in the most precarious places. This makes them only ruminant able to climb trees, although the tree generally has to be on somewhat of an angle.
सोजत नस्ल के बकरे राजस्थान के छोटे शहर सोजत में पाई जाती है यह पाली मारवाड़ और अजमेर मार्ग के बीच में पड़ता है।
सोजत बकरी को पहले दूध के लिए लोग इस्तेमाल करते थे। मगर आज लोग इसे मांस के लिए भी प्रयोग करते है। सोजत बकरी में यह खास बात होता है कि ज्यादातर बकरी और बकरे की सींग नही होती और इस बकरी का रंग सफेद होता है और इनके शरीर में काले धब्बे होते है। इनके कान 8 से 10 इंच तक लम्बे होते है।
इस नस्ल की बकरियां बकरी फार्म के लिए इस्तेमाल होती है। जो लोग बकरी पालन करने की सोच रहे है। उनके लिए इस नस्ल की बकरी बहुत ही लाभदायक होगी यह बहुत ही खाने पीने वाली बकरी है। और यह 3 माह में 25 किलो तक बढ़ सकती है। यह बकरी 14 माह में 2 बार बच्चे देती है। और 40% सिंगल और 60% जुड़वा बच्चे देती है और यह बकरे हर मौसम के लिए उचित होते है।
ओस्मनाबादी बकरीयों का रंग 70ः काला होता है और 30ः सफेद या भूरे रंग के होते है इनके शरीर का आकर बड़ा होता है और पैर लम्बे लम्बे होते है। यह नस्ल की बकरीया 16 से 19 महीने में बच्चा देने योग्य हो जाती है यह साल में 2 से 3 बार बच्चे दे सकती है। ओस्मनाबादी बकरीया को ज्यादा तर मांस और दूध के इस्तेमाल में लाया जाता है। इसकी प्रजनन क्षमता अच्छी होने के कारण यह बहुत ही लोकप्रिय बकरी की नस्ल में से एक है।
यह किसी मौसम में आसानी से रह सकती है इसका मांस बहुत ही स्वादिष्ट होती है। और यह नस्ल की बकरी की मांग लोगों में बहुत ज्यादा है। इस बकरी का पालन कर के ज्यादा से ज्यादा लाभ उठा सकते हैं।
भारतवर्ष से जुड़ा हर एक क्षेत्र Bakri Palan Business करने के लिहाज से उपयुक्त क्षेत्र माना गया है | बस आपको अपना Bakri Palan बिज़नेस शुरू करने के लिए आपके घर के आस पास ही कोई ऐसी जगह तलाश करनी है | जहाँ से आप इस बिज़नेस को आसानी से क्रियान्वित कर सको | लेकिन इसके अलावा जमीन का चुनाव करते वक़्त निम्न बातो का ध्यान रखा जाना बेहद आवश्यक है |
Housing को Hindi में घर बनाना कहते हैं | चूँकि यहाँ पर Goat Farming की बात हो रही है, इसलिए इस वाकये में हाउसिंग का अर्थ Bakri Palan के लिए घर बनाने से लगाया जाना चाहिए | बकरी पालन करने के लिए बकरियों के लिए घर बनाना एक बहुत ही महत्व्पूर्ण काम है | लेकिन ग्रामीण भारत में इस क्रिया को महत्व्पूर्ण स्थान शायद नहीं दिया जाता | क्योकि जो लोग छोटे पैमाने पर Bakri Palan करते हैं | वे बकरियों के लिए कोई अलग सा घर ना बनाकर, उन्हें अन्य पशुओं के साथ ही ठहरा देते हैं | जिससे उनकी उत्पादकता पर इसका असर साफ़ तौर पर दिखाई देता है | व्यवसायिक तौर पर बकरी पालन करने के लिए बेहद जरुरी हो जाता है | की बकरियों के रहने के लिए एक अलग सा स्थान तैयार किया जाय, और निम्न बातों का ध्यान विशेष तौर पर रखा जाय |
Bakri Palan Business को करने में लोगो को कुछ कठिनाइयां आती हैं | जिससे उनकी रुचि इस Business में कम होती जाती है |